धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता आरक्षण – सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल में 77 समुदायों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर की गई।

मामला तब शुरू हुआ जब पश्चिम बंगाल सरकार ने 77 समुदायों को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) में शामिल किया था, जिनमें अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोग थे। इस निर्णय को कलकत्ता हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था, जिसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी।

सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और के. वी. विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता।” इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिबल ने राज्य सरकार के फैसले का बचाव किया। कपिल सिब्बल ने बताया कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं बल्कि समुदायों के पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि पश्चिम बंगाल राज्य में अल्पसंख्यकों की आबादी 27-28 प्रतिशत है। वहीं उत्तरदाताओं के लिए सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया ने कहा कि आरक्षण बिना किसी डेटा या सर्वेक्षण के और पिछड़ा वर्ग आयोग को दरकिनार करते हुए दिया गया था। उन्होंने कहा कि 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा बयान दिए जाने के तुरंत बाद, आयोग से परामर्श किए बिना 77 समुदायों के लिए आरक्षण दिया गया था।

सुनवाई के दौरान बेंच ने पूछा कि हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल बैकवर्ड क्लासेज (आरक्षण) अधिनियम, 2012 की धारा 12 को कैसे निरस्त किया, जबकि यह धारा राज्य को विभिन्न समुदायों की पहचान करने का अधिकार देती है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इंदिरा साहनी मामले में यह तय किया गया था कि यह कार्यकारी का अधिकार है कि वह समुदायों की पहचान कर उनका वर्गीकरण करे। न्यायमूर्ति गवई ने पूछा, “कैसे एक ऐसी धारा को निरस्त किया जा सकता है जो राज्य को यह अधिकार देती है? क्या केवल किसी प्रावधान का दुरुपयोग होने का डर ही उसे निरस्त करने का कारण बन सकता है?”

खंडपीठ ने मामलों को 7 जनवरी, 2025 तक विस्तृत सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया।

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