एक बार फिर उत्तराखण्ड को मायूस कर गए मोदीः गरिमा माहरा दसौनी

देहरादून। उत्तराखण्ड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता एवं उत्तर प्रदेश की मीडिया प्रभारी गरिमा माहरा दसौनी ने प्रधानमंत्री मोदी के ऋषिकेश दौरे पर कटाक्ष किया है। दसौनी ने कहा कि पिछली बार जब प्रधानमंत्री मोदी उत्तराखंड आये थे, तब हमने उनसे अंकिता भंडारी हत्याकांड, राज्य में बेरोजगारी, अग्निपथ योजना के खिलाफ राज्य में बढ़ता विरोध, सिल्क्यारा सुरंग हादसे की जांच आदि विषयों पर सवाल करते हुए बोलने का आग्रह किया था, इन गंभीर मुद्दों पर प्रधानमंत्री ने एक शब्द भी नहीं बोला। वह आज फिर उत्तराखंड आये उम्मीद थी कि आज वह प्रदेश के इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर बोलने का साहस दिखाएंगे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा।

पिछले साल दिसंबर में, अन्य राज्यों के लोगों को कृषि भूमि की बड़े पैमाने पर बिक्री पर रोक लगाने और सख़्त भूमि अधिकार कानूनों की मांग करने के लिए हजारों प्रदर्शनकारी देहरादून में एकत्र हुए थे। उत्तराखंड एकमात्र हिमालयी राज्य है जो बाहरी लोगों को कृषि भूमि बेचने की इजाजत देता है। 2003 में, राज्य की कांग्रेस सरकार ने बाहरी लोगों को कृषि भूमि की बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया था। अधिकतम 500 वर्ग मीटर की खरीद की अनुमति थी। वह भी केवल खेती के प्रयोजनों के लिए। 2008 में इस सीमा को घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया गया। 2018 में भाजपा ने इस सीमा को पूरी तरह से हटा दिया, जिससे भूमि के बड़े हिस्से की ख़रीद और भूमि-उपयोग में बदलाव की अनुमति मिल गई। भले ही यह “विकास“ की आड़ में किया गया था, लेकिन कोई उद्योग स्थापित नहीं किया गया। उल्टा व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बड़े भूमि बैंक तैयार हो गए। पहाड़ के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए उत्तराखंड का निर्माण किया गया था। भाजपा सरकार ने उनसे उनके अधिकार क्यों छीने?

 दिसंबर में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, नौ हिमालयी राज्यों में से उत्तराखंड में महिलाओं और बच्चों के बलात्कार के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। मोदी सरकार ने गंगा नदी में पानी की गुणवत्ता में सुधार के लक्ष्य के साथ 2014 में नमामि गंगे योजना शुरू की थी। इसके तहत 2014 और 2019 के बीच 20,000 करोड़ के ख़र्च को मंजूरी दी गई थी और 2021 तक 815 नए सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) बनाए या प्रस्तावित किए गए। जल शक्ति मंत्रालय का दावा है कि नदी की स्थिति में काफी सुधार हुआ है लेकिन, जैसा कि इस सरकार के मामले में अक़्सर होता है, वह दावा झूठ निकला। संकट मोचन फाउंडेशन ने पाया कि सुधार के बजाय, गंगा में पानी की गुणवत्ता वास्तव में लगातार ख़राब हो रही है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी पाया कि पानी की गुणवत्ता उनके मानकों के अनुरूप नहीं है। जल शक्ति मंत्रालय का दावा है कि नए एसटीपी ठीक काम कर रहे हैं। लेकिन आईआईटी वाराणसी के एक प्रोफेसर ने कहा कि सरकार की योजनाएं पूरी तरह से “फर्जी“ थीं। इसके अलावा, 2017 के शुरुआत में, परियोजना की एक सीएजी ऑडिट रिपोर्ट में “वित्तीय प्रबंधन, कार्यान्वयन और निगरानी में खामियों“ का उल्लेख किया गया था। मामले को बदतर बनाने के लिए, एसटीपी के ठेके उन कंपनियों को दिए गए हैं जिनका भाजपा से गहरा संबंध है। 2017 में, पूर्व भाजपा सांसद सुभाष चंद्रा की अध्यक्षता वाली कंपनी को 150 करोड़ से अधिक का एसटीपी कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था, जिसका सीवेज उपचार में काम करने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। एक अन्य संयंत्र अडानी समूह द्वारा संचालित है, और 5 करोड़ वैल्यू का “वैज्ञानिक“ अध्ययन का ठेका पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट को दिया गया है। भाजपा में ख़ुद ही इतनी गंदगी है कि हमारी पवित्र नदी को साफ करने में उनकी विफलता कोई आश्चर्य की बात नहीं है। प्रधानमंत्री को स्पष्ट करना चाहिएः प्रधानमंत्री के रूप में वह अपने कार्यकाल की शुरुआत में देश के लोगों से किए इस महत्वपूर्ण वादे को पूरा करने में अबतक क्यों नाकाम रहे और आगे इसे पूरा करने के लिए क्या करेंगे?

प्रधानमंत्री मोदी ने ऋषिकेश की चुनावी रैली में सम्बोधन के दौरान कहा कि 2019 में प्रदेश के 100 पानी के नलों में से मात्र 9 नलों में जल था और आज 10 में 9 नलों में जल है, तो प्रधानमंत्री जी से पूछना था  कि 2014 से 2019 के बीच केन्द्र में भी आप ही सरकार थी और राज्य में भी पॉचों सांसद आप ही के दल के थे तो फिर यदि 100 में से 9 ही नलों में जल था तो किसकी गलती थी?

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