दावा : अकेलापन दूर करने के लिए साथी बनेंगे वर्चुअल इंसान

पर्थ । सामाजिक रूप से अलग-थलग पड़ जाने के कारण दुनियाभर में कई लोग विशेषकर बुजुर्ग अकेलेपन से जूझ रहे हैं। ऐसे लोगों का अकेलापन दूर करने के लिए वर्चुअल इंसान का साथ मददगार साबित हो सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में इन वर्चुअल इंसानों को तैयार किया जा रहा है। ये वर्चुअल इंसान चल सकते हैं, बात कर सकते हैं और बैठ भी सकते हैं। ऐसे वर्चुअल इंसान फिलहाल ‘साइंस फिक्शन यानी वैज्ञानिक काल्पनिक फिल्मों में नजर आते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, वह दिन दूर नहीं जब हमारे सबसे अच्छे मित्रों में कंप्यूटर जनित इंसान भी शामिल होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो बढ़ती उम्र के साथ अकेलेपन की समस्या से निपटने की कोशिश कर रहे हैं। विकसित होती प्रौद्योगिकी के बीच हमारी बदलती जनसांख्यिकी हमें इन वर्चुअल मनुष्यों की ओर ले जा सकती है। वहीं, अमेरिका में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि अकेले रहने वाले इंसान अकेलापन दूर करने के लिए काल्पनिक पात्रों से बातचीत करते हैं। ऐसे में उनके मानसिक संतुलन खोने का खतरा हर समय बना रहता है। ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डायलन वैगनर ने कहा, वर्चुअल इंसान अकेलापन दूर करने के लिए बुजुर्गों का बेहतर तरीके से साथ देने में सक्षम हैं।
तेजी से बढ़ रही बुजुर्गों आबादी
एशिया, यूरोप और उत्तर अमेरिका में कई ऐसे विकसित देश हैं, जिनके समाज की औसत आयु तेजी से बढ़ रही है। उदाहरण के लिए 2066 तक ऑस्ट्रेलिया की कुल आबादी के करीब पांचवें हिस्से की उम्र 65 वर्ष या उससे अधिक हो जाने का अनुमान है। यह बड़ी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां पैदा करता है। इसके कारण कुशल कार्यबल में कमी आने और स्वास्थ्य एवं सामाजिक सेवाओं पर अप्रत्याशित दबाव पड़ने की समस्या पैदा हो सकती है, जिनके समाधान की आश्यकता है। बुजुर्ग होती आबादी की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक समस्या सामाजिक स्तर पर अलग-थलग हो जाना है। अधिकतर बुजुर्ग लोग या तो वृद्धाश्रमों में रहते हैं या अपने घरों में रहते हैं, लेकिन उनका अपने परिजन या मित्रों से सामाजिक संवाद बहुत कम होता है। वर्चुअल इंसान इस समस्या को कम करने में मदद कर सकता है।
क्या है वर्चुअल इंसान
वर्चुअल इंसान कंप्यूटर जनित मनुष्य होता है। यह भौतिक दुनिया में सहजता से घुलमिल जाता है। यह कंप्यूटर-जनित मानव एक असल मनुष्य की तरह दिखाई देता है और यह वास्तविक एवं वर्चुअल दुनिया के बीच की सीमाओं को तोड़ रहा है। असली मनुष्य की तरह ही चल सकता है, बैठ सकता है या लेट सकता है और लोगों से बात कर सकता है।
आकार-शक्ल बदल सकती है
वर्चुअल इंसान को कोई भी आकार दिया जा सकता है, कोई भी शक्ल दी जाती है और व्यवहार भी किसी की भी तरह तय किया जा सकता है, जबकि रोबोट के लिए यह संभव नहीं है। यह वर्चुअल इंसान असली मनुष्य की तरह ही चल सकता है, बैठ सकता है या लेट सकता है और लोगों से बात कर सकता है। हालांकि, यह चीजों को उठा नहीं सकता, यह चीजों को इधर-उधर नहीं ले जा सकता और न ही चाय बना सकता है।
रोबोट से काफी अलग
रोबोट को भी अकेलेपन का समाधान माना जाता है, लेकिन वर्चुअल मनुष्य रोबोट की तुलना में किफायती हैं। किसी भी रोबोट में हरकत करने वाले फिजिकल स्ट्रक्चर होते हैं। जिसमें एक तरह का मोटर, सेंसर सिस्टम, पावर सोर्स, कंप्यूटर ब्रेन होता है जो पूरी बॉडी को कंट्रोल करता है। रोबोट किसी निर्देश पर काम करते हैं। रोबोट को कंट्रोल करना पड़ता है। रोबोट एक महंगा उत्पाद होता है। इसके विपरीत वर्चुअल इंसान छाया होती है और कंप्यूटर से अपने आप संचालित होता है।

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