नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सोमवार को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा मध्य प्रदेश सरकारों द्वारा कावड़ यात्रा मार्गों पर दुकानदारों को अपनी पहचान उजागर करने तथा बैनर व बोर्ड पर संचालक (स्वामी) का नाम लिखने का जो आदेश दिया गया था उस पर 26 जुलाई तक अंतरिम रोक लगा दी गई है तथा तीनों राज्यों की सरकारों को नोटिस जारी कर 26 तक जवाब देने को कहा गया है अब इस मामले की सुनवाई 26 जुलाई को होगी।
न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और एनवीएन भाटी की पीठ ने सोमवार को एक एनजीओ तथा टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा व एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया गया है। जिसमें इस पर 26 जुलाई तक अंतरिम रोक लगाते हुए कहा गया है कि तब तक किसी दुकानदार को इस तरह के बैनर या बोर्ड लगाने के लिए बाध्य नहीं किया जाए। इसके साथ ही पीठ ने साफ किया है कि खाने का प्रकार लिखा जाना जैसे शुद्ध शाकाहारी या मांसाहारी व जैन फूड आदि तो ठीक है लेकिन दुकानदार का नाम लिखा जाना उचित नहीं है।
उल्लेखनीय है कि आज याचिकाकर्ताओ की तरफ से अदालत में तीन अधिवक्ता तो मौजूद रहे लेकिन राज्यों की सरकारों की तरफ से कोई अधिवक्ता कोर्ट नहीं पहुंचा। महुआ मोइत्रा के अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में अपनी दलील पेश करते हुए कहा कि इस निर्णय से एक वर्ग विशेष के लाखों लोगों का रोजगार प्रभावित हो रहा है वहीं यह निर्णय छुआछूत की भावना को बढ़ाने वाला है तथा नागरिकों के सामानता के अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने राज्य सरकारों के इस फैसले को एक तरफा बताते हुए संविधान के अनुच्छेद 19 तथा 23 का उल्लंघन बताया। पीठ ने जब कहा कि सरकारों की तरफ से इसे स्वैच्छिक बताया गया है तो सिब्बल ने कहा कि इसे अनिवार्य रूप से लागू किया जा रहा है।
खास बात यह है कि मध्य प्रदेश और उत्तराखंड सरकार का सर्वोच्च न्यायालय के स्थगन आदेश के बाद जो बयान आया है उसमें कहा गया है कि उन्होंने ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया है। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार तो इसे कावड़ यात्रा मार्गों पर ही नहीं पूरे प्रदेश में लागू करने का आदेश 10 जुलाई को दे चुकी है। 26 तारीख को इस अंतरिम रोक को अंतिम रोक में बदला जाता है या कुछ और फैसला लिया जाता है यह 26 को ही पता चलेगा फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है।